विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष
*भाषा कला संस्कृति की विकास के लिए संघर्षरत सरायकेला, 29 से होगी ओड़िया नाटक का मंचन*
*दीपक कुमार दारोघा*
सरायकेला: उत्कलीय परंपरा को अपने बाहों में समेटे हुए सरायकेला आज भी ओड़िया भाषा कला संस्कृति की विकास के लिए संघर्षरत है।
चाहे अभिनय कला की बात हो या फिर विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य कला की बात हो या फिर पर्यटन की बात हो हर क्षेत्र में सरायकेला अपने पुराने गौरव को बचाने के लिए संघर्षरत है। चंद दिनों बाद फिर उत्कल दिवस होगा।लोग पूर्वजों का गाथा सुनाएंगे। यह भी कहते नहीं भूलेंगे कि राजनीतिक कारणों से ओडिशा (उत्कल) से सरायकेला (सिंहभूम) विछिन्न है। लोग आज यह भी कहते नहीं भूलते कि प्रथम गोलमेज सम्मेलन लंदन में 1930 को हुई थी। उस समय उत्कल रियासतों में पारलाखेमूंडी के कृष्ण चंद्र देव( कृष्ण चंद्र गजपति नारायण देव) के साथ सरायकेला रियासत के विजय प्रताप सिंह देव, मयूरभंज रियासत के राम चंद्र भंज के अलावे मधुसूदन दास लंदन पहुंचे थे। सूत्रों के मुताबिक ओड़िया जाति (भाषियों) के लिए स्वतंत्र प्रदेश का प्रस्ताव भी इनके द्वारा दिया गया था। कांग्रेस इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुई। कोई समझौता नहीं हो सका।
इससे पहले 1903 में मधु बाबू ने उत्कल सम्मेलनी का गठन कर ओड़िया जाति के गौरव को आगे बढ़ने का प्रयास की। जब अंग्रेज ने जगन्नाथ मंदिर में टैक्स लगाया उसका अधिवक्ता मधु बाबू ने विरोध की और कोर्ट में जीत हासिल की। उन्हें उत्कल गौरव के रूप में आज भी याद किया जाता है।
आधुनिक सरायकेला छऊ कला के जनक के रूप में परिचित विजय प्रताप सिंहदेव ओड़िया भाषा कला संस्कृति की उत्थान में आजीवन जुटे रहे। इनके नेतृत्व में सरायकेला छऊ कला पहली बार 1938 में विदेशी धरती (इटली) में भारतीय कला संस्कृति का बखान करने में आगे रहा। इनके भाई सरायकेला रियासत के महाराजा आदित्य प्रताप सिंहदेव थे। महाराजा आदित्य प्रताप सिंहदेव के समय ओड़िया भाषा संस्कृति का स्वर्ण युग रहा। इनके समय में अब्दुल सेटलमेंट(भूमि का सर्वे सेटलमेंट) हुआ था और प्रजा को ओड़िया खतियान मिला था जिसे अंतिम सर्वे सेटेलमेंट 1932 भी कहा जाता है। उनके राज्य में स्कूलों में ओड़िया भाषा माध्यम से पढ़ाई होती थी। वर्ष 1936 में स्वतंत्र उत्कल प्रदेश(ओड़िशा) बना। लोगों को जागरूक करने में गोपबंधु दास की भी अहम भूमिका रही। वे उत्कलमणि के नाम से भी परिचित रहे। देश स्वाधीनता के बाद देशी रियासतों को भारत में विलय का अभियान चला। सरायकेला रियासत के महाराजा आदित्य प्रताप सिंहदेव ने 16 दिसंबर 1947 को ओडिशा के कटक में गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के समक्ष विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। तब से उनके अधीन रहने वाले सेना, कर्मचारियों का ओर किसी ने ख्याल नहीं रखा। परिणाम समर्पित इन ओड़िआ जातियों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी। ओड़िया भाषी लोग भाषा संस्कृति को बचाए रखने में अक्षम होने लगे। यहां तक कि राजनीतिक दृष्टि से सरायकेला(सिंहभूम) को ओड़िशा से काटकर बिहार में मिला दिया गया। देश गणतंत्र के बाद भूमि का सर्वे सेटलमेंट हुआ। जिसे हाल सर्वे सेटेलमेंट भी कहा जाता है। 1964-72 व 1982 के बीच हुई यह सर्वे सेटलमेंट काफी उल्टा-पुल्टा रहा। सरायकेला नगर क्षेत्र के खतियानों में तो रैयतों का जाति तक जिक्र नहीं किया गया। इसके लिए लोग आज भी परेशान हैं। ओडिया भाषी लोगों को पहली बार हिंदी खतियान मिला। भाषा जाति को मिटाने के षड्यंत्र के बावजूद लोग ओड़िया भाषा में पढ़ाई के लिए संघर्षरत रहे हैं। वर्ष 2000 में बिहार के गर्भ से झारखंड राज्य का सृजन हुआ। और इस राज्य में वर्ष 2001 को सरायकेला जिला मुख्यालय बना। झारखंड में भी ओड़िया भाषियों की स्थिति दयनीय है। ओड़िया भाषा संस्कृति को बचाने के लिए लोग आज भी संघर्षरत हैं। झारखंड में ओड़िया को भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा मिला। इसके बावजूद स्कूल,कॉलेज में ओड़िया पुस्तक शिक्षक की कमी की समस्या बनी हुई है। राज्य सरकार ओड़िया पुस्तक प्रकाशन के लिए मुद्रणालय तक नहीं बना पाई। ओडिया भाषी लोग भाषा कला संस्कृति बचाने में संघर्षरत है। यहां तक कि छऊ कला के लिए प्रसिद्ध सरायकेला के पर्यटन क्षेत्र भी विकास की राह देख रही है। इसके बावजूद सरायकेला की जनता ने आशा नहीं छोड़ी। भाषा कला संस्कृति उत्थान में जुटी हुई है। इसका एक झलक सरायकेला नगर में देखने को मिल रहा है। अब फिर ओड़िया भाषा कला संस्कृति की विकास के लिए संघर्षरत सरायकेला में होगा ओड़िया नाटक का मंचन। उत्कल युवा एकता मंच के बैनर तले 29 मार्च से होने वाली चार दिवसीय कार्यक्रम में विभिन्न स्थानीय संस्था भाग लेंगे। सरायकेला उत्कल युवा एकता मंच के सचिव रुपेश साहू ने कहा कि 29 मार्च से ओड़िया नाटक का मंचन सरायकेला में होगा। पब्लिक दुर्गा पूजा मैदान में नाटक का मंचन होगा। मार्च 29 को *केते दुखो देबु दे रे कालिया* नाटक का मंचन होगा। 30 मार्च को मां अन्नपूर्णा नाट्य अनुष्ठान द्वारा नाटक *लुहो रे लेखुछि नुआ कहाणि* का मंचन होगा। मार्च 31 को गणपति ओपेरा द्वारा प्रस्तुत नाटक *टोपे सिंदूरो आउ द्वि पोटो शंखा* का मंचन होगा। श्री जय मां पाऊड़ी नाट्य अनुष्ठान की ओर से *कली युगो तोते दुरू जुहारो* नामक नाटक का मंचन होगा।
बताते चलें कि अभिनय कला के जरिए ओड़िया भाषा संस्कृति के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास आगे भी होता रहा है। सरायकेला उत्कलमणि आदर्श पाठागार आज भी इसका मुक साखी है। इस बैनर के तले कभी ओड़िया नाटक का मंचन होता था। लोग आज भी याद करते हैं। यूं कहें कि विपरीत परिस्थिति में भी ओड़िया भाषी लोग अपने भाषा संस्कृति को बचाए रखने के लिए आज भी संघर्षरत हैं।
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