*ओडिशा, हिमाचल, झारखंड में शिव की अपूर्व महिमा*
*दीपक कुमार दारोघा*
सरायकेला: ओड़ीशा के भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर, हिमाचल प्रदेश, कांगड़ा जिले के काठगढ़ शिव मंदिर के अलावे झारखंड सरायकेला भैरव पीठ स्थल व कूदरसाई शिव मंदिर में भगवान शिव की अपूर्व महिमा है।
महाशिवरात्रि में इन देवालयों में भी भक्त श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। सूत्रों के मुताबिक भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर में लिंगराज की पूजा अर्चना के दौरान बेल पत्ता, तुलसी पत्ता का भी उपयोग होता है। दूसरे शिव मंदिर में केवल बेल पत्ता का उपयोग होता है। लिंगराज मंदिर के चूड़ा में त्रिशूल के अलावे तीर धनुष भी लगा है। यह हरि-हर का प्रतिक है। और भी कई विशेषताएं इस मंदिर का है। भक्त श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर आस्था का केंद्र है।
शिव की महिमा है कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला अंतर्गत इंदौरा तहसील में काठगढ़ शिव मंदिर दो स्वरूप में शिवलिंग है। इस शिव मंदिर में शिव की अपूर्व महिमा है। शिवलिंग दो भागों में बंटा है। अर्धनारीश्वर स्वरूप की आराधना होती है। विश्व का एकमात्र अर्धनारीश्वर मंदिर कहा जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक 326 ईसा पूर्व में सिकंदर ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था। इस स्थान से मैसेडोनिया(उत्तरी यूनान) के सिकंदर महान भारत विजय सपना अधूरा छोड़कर वापस लौटे। बीमारी के कारण रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। उक्त शिवलिंग खुले आसमान के नीचे था। बाद में मंदिर बनी।
विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य की धरती सरायकेला में खरकाई नदी तट पर स्थित प्राचीन भैरव पीठ स्थली भी खुले आसमान के नीचे हैं। सूत्रों के मुताबिक नाग जनजाति के लोग यहां पूजा अर्चना करते थे। यहीं शस्त्र अभ्यास करते थे। बाद में यह स्थल छऊ मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण स्थल भी रहा। यह नुआगड़ आखड़ा के रूप में भी परिचित है। लोगों की आस्था बाबा भैरव के प्रति बनी हुई है।
इसके अलावे कूदरसाई शिव मंदिर, माजणा घाट शिव मंदिर प्राचीन शिव मंदिरों में से हैं। सरायकेला पहले प्रिंसली स्टेट था। राजा राजवाढ़ समय से सरायकेला में भगवान शिव की अपूर्व महिमा रही है। विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य की उत्पत्ति का रहस्य भी इसी में छुपा है। झारखंड, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश के इन शिव मंदिरों में विशेषता के मुख्य कारण शिव की अपूर्व महिमा ही कहा जा सकता है।
Comments
Post a Comment